पुस्तक समीक्षा : बनारस टॉकीज़
फ़ोटो: गूगल "सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं सुना है रब्त है उसको खराब हालों से सो अपने आप को बर्बाद करके देखते हैं सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं यह बात है तो चलो बात करके देखते हैं सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं सुना है रात से बढ़कर है काकुलें उसकी सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं सो हम बहार पर इलज़ाम धर के देखते हैं सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है कि फूल अअपनी कबाएँ क़तर के देखते हैं ।" ~ सूरज उर्फ़ 'बाबा' (बनारस टॉकीज़) लेखक - सत्य व्यास मूल्य - रु. 152 (पेपरबैक) प्रकाशन - हिंद युग्म जिन्हे बनारस से प्रेम है उनके लिए तो कोहिनूर है 'बनारस टॉकीज़' और जिन्हे बनारस से प्रेम नहीं है, तो उन्हें पढ़कर अवश्य हो जाएगा। क्या ही कहना इस उपन्यास के बारे में…ये कहानी है बी• एच• यू• से एल• एल• बी• कर रहे है कुछ युवाओं की है। इसका मुख्य किरदार है ‘विशाल’ जो इस कहानी का वक्ता है और इस ...