मेरा आगार : सीतामढ़ी
"मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव । जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥" अनुवाद : "मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।" दुनिया में सबके पास एक ऐसी जगह होती है जिसे वे अपना घर कहना पसंद करते हैं। एक ऐसी जगह जो परिपूर्ण तो नहीं है लेकिन यादों का एक अम्बार लेकर आती है। वह जगह जहाँ सभी आपके परिचित होते हैं, वही पुरानी इमारतें, वही सार्वजनिक समस्याएं और स्थानीय लोगों से निपटने का एक परिचित तरीका होता है। ये सभी चीज़ें हमे अपने घर को अन्य स्थानों से अधिक महत्व देने पर मजबूर करते हैं। तो आज मैं यहां, अपने ‘घररररर’ का वर्णन करूंगी। घर शब्द पर अधिक ज़ोर इसीलिए दिया है क्योंकि मुझे अपने घर से बहुत प्यार व लगाव है। मेरे आस-पास के लोग यानि मेरा परिवार, मेरे मित्र व मेरे सभी करीबी लोगों को ये मालूम है कि मुझे अपने घर, उस स्थान से कितना लगाव है। मेरा जन्म ‘सीतामढ़ी’ नामक एक छोटे से शहर में हुआ है। सीतामढी एक भारतीय शहर है और बिहार के मिथिला क्षेत्र में सीतामढी जिले का जिला मुख्यालय है और तिरहुत ...