मेरा आगार : सीतामढ़ी
"मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव ।
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥"
अनुवाद : "मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।"
दुनिया में सबके पास एक ऐसी जगह होती है जिसे वे अपना घर कहना पसंद करते हैं। एक ऐसी जगह जो परिपूर्ण तो नहीं है लेकिन यादों का एक अम्बार लेकर आती है। वह जगह जहाँ सभी आपके परिचित होते हैं, वही पुरानी इमारतें, वही सार्वजनिक समस्याएं और स्थानीय लोगों से निपटने का एक परिचित तरीका होता है। ये सभी चीज़ें हमे अपने घर को अन्य स्थानों से अधिक महत्व देने पर मजबूर करते हैं। तो आज मैं यहां, अपने ‘घररररर’ का वर्णन करूंगी।
घर शब्द पर अधिक ज़ोर इसीलिए दिया है क्योंकि मुझे अपने घर से बहुत प्यार व लगाव है। मेरे आस-पास के लोग यानि मेरा परिवार, मेरे मित्र व मेरे सभी करीबी लोगों को ये मालूम है कि मुझे अपने घर, उस स्थान से कितना लगाव है। मेरा जन्म ‘सीतामढ़ी’ नामक एक छोटे से शहर में हुआ है।
सीतामढी एक भारतीय शहर है और बिहार के मिथिला क्षेत्र में सीतामढी जिले का जिला मुख्यालय है और तिरहुत डिवीजन का एक हिस्सा है। शहर का नाम देवी सीता के जन्मस्थान के सम्मान में रखा गया था। 1875 में, मुजफ्फरपुर जिले के भीतर सीतामढी के लिए एक उपखंड बनाया गया था। 11 दिसंबर 1972 को सीतामढी को मुजफ्फरपुर जिले से अलग कर एक अलग जिला बनाया गया। यह बिहार के उत्तरी भाग में स्थित है। जिला मुख्यालय डुमरा में स्थित है, जो सीता मंदिर से पांच किलोमीटर (3 मील) दक्षिण में है।
सीतामढी का इतिहास रामायण काल का है और इसे वह स्थान माना जाता है जहां राजा जनक को माता सीता मिली थीं। देवी सीता को समर्पित एक मंदिर, जो महाकाव्य रामायण का विषय है, वह पुनौरा धाम यानि मेरे सीतामढी में स्थित है।
"मेरे लिए जन्मभूमि/घर का मतलब वह स्थान है जहां सूर्योदय बाकियों से अलग, कुछ और ही महसूस हो।
मुझे यहां की गलियां और सड़कें घर जैसी लगती हैं।
मेरे लिए यहाँ की धूल भरी गलियाँ जादुई प्रतीत होती हैं।
मेरे लिए, यहाँ के लोग मेरे अपने हैं।
मेरे लिए यहां के सभी लोग मेरे भाई-बहन हैं और उनके प्रति मेरा कर्तव्य है।
मेरे लिए, यह वह जगह है जहां मुझे शांति मिलती है।
मेरे लिए, यह वह जगह है जहां मेरी जड़ें हैं एवं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरी शाखाएं कहां जा रही हैं।
मेरे लिए, यह जगह पवित्र है और मेरे दिल के बेहद करीब है। यह जगह मेरी पहचान है।"
मेरी जन्मभूमि मेरा प्रतिनिधित्व करती है और यह दर्शाती है कि मैं कहाँ से आती हूँ। यह दर्शाती है मेरी संस्कृति, मेरे मूल्य, मैं समाज में एक व्यक्ति के रूप में कैसी हूं। यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि मेरा घर ही मेरा जन्मस्थान है। मैंने उस जगह पर अनेक यादें बनाई हैं। मुझे उस जगह से लगाव है। मेरे घर का खान-पान, मिलनसार लोग, यह धार्मिक भावना को दर्शाता है। मैं जो हूं उसका शुद्ध सार मेरे घर से ही आता है। इसने मुझे एक पहचान, मेरी भाषा दी है। संक्षेप में कहें तो, मैं कभी भी अपने घर के स्थान पर किसी अन्य स्थान का चयन नहीं कर सकती क्योंकि यह वह स्थान है जहाँ मैं पुर्णतः घर जैसा और जीवन में शांति महसूस करती हूँ।
अचानक से सीतामढ़ी का ज़िक्र करते हुए मुझे जरा भी संकोच नहीं हो रहा क्योंकि अक्सर लोगों को त्योहारों के समय अपने घर की याद आ ही जाती है। सीतामढ़ी एक एसा शहर है जहाँ शायद सब एक दूसरे को जानते होंगे। कम-से-कम मुझे तो एसा ही लगता है!!!
क्योंकि जब मै छोटी थी और ‘चचा जी’ के साथ उनके बाइक पर पीछे बैठकर घुमती थी तब जितने भी लोग मिलते थे वे सभी परिचित ही होते थे। तब मुझे एसा लगता था कि क्या सब लोग चचा जी को जानते हैं!! और शायद आज भी एसा ही लगता है। ;))
मेरा घर सीतामढ़ी, दिल्ली से लगभग १२०० किलोमीटर दूर है। और अभी मै दिल्ली में बैठ कर उन सभी यादों को इस लेख में समेटने का प्रयास कर रही हूँ जो मैंने कुछ वर्ष पूर्व अपने शहर में अपने लोगों के साथ बनाई थी। बीते वर्षों में मेरे शहर ने खूब तरक्की कर ली है और मुझे उम्मीद है आने वाले वर्षों में यह और अधिक तरक्की करेगा। आज भी जब कोई तसीव देखती हूँ तो वहाँ जाने की इच्छा अधिक प्रबल हो उठती है और मन अशांत होने लगता है।
बीते दिन दुर्गा पूजा के न जाने कितने पंडाल लगे होंगे वहाँ और उनमे से कई पंडाल मैंने लोगों के स्टेटस पर कुछ एक को विडियो कॉल पर देखा था। अब तो वहाँ पहले के मुकाबले और ख़ूबसूरत पंडाल बनाये जाते हैं और खूब सरे कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। 10 साल हो गये, मैंने सीतामढ़ी में दुर्गा पूजा नहीं देखी। वो भक्ति भाव, चकाचौंध, हर तरफ सुनाई दे रहे गाने, चरों तरफ फैली खुशहाली, सड़के व चौराहों पर लगी रंग-बिरंगे लाइट्स और सबके घरों की रौनक…10 साल हो गये।
दशहरा के खत्म होने के बाद अब एक-एक कर सभी आने वाले त्योहारों में मुझे अपने घर की याद आएगी जो कि लाज़मी है। दीपावली, श्रापन और छठ…इन सब को केवल तस्वीरों में देख कर ही ख़ुश होना पड़ेगा। सीतामढ़ी मेरी यादों में और अवचेतन मन में कुछ इस तरह बसा हुआ है कि यहाँ दिल्ली की अधिकतर चीज़ें मुझे मेरे घर की याद दिलाती है।
मेरे दोस्तों ने अक्सर मुझे ये कहकर ख़ुश होते हुए सुना है कि “अरे, ये तो मेरे सीतामढ़ी में भी है !’ या फिर ‘ऐसे तो मेरे सीतामढ़ी में होता था’ या ‘ये मैंने बचपन में सीतामढ़ी में किया है’!!” १०० से भी अधिक बार यह सब बोल कर मैंने अपने को उनके समक्ष हंसी का पात्र बना चुकी हूँ, पर क्या करें मेरे बचपन की अच्छी-बुरी सभी यादें सीतामढ़ी से ही जुड़ी हैं।
सीतामढ़ी के मेले,उन मेलों में बिकने वाले खिलौने, वहाँ की सडकें, वहाँ के घर,रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, मंदिर, मेरा मोहल्ला…यहाँ तक कि आज से कई साल पहले वहाँ आने वाली बाढ़ तक!!! ये सब मुझे आज भी उतने ही अच्छे से याद है। मुझे लगता है बस अब सीतामढ़ी में ओलंपिक होना ही बाकी है!!!! ;))
खैर मज़ाक से हटकर देखें तो अक्सर मैंने अपने आप को यह कहते हुए पाया है कि ‘I was a privileged Kid!’ और इस किड को प्रिविलेज्ड किड बनाने वाले वैसे तो मेरे चचा जी थे लेकिन बड़ी माँ, दीदी, भैया, दादी और मम्मी ने भी कोई कमी नहीं की थी। तो आज उसी प्रिविलेज्ड किड को कई दिनों से अपने जन्मभूमि सीतामढ़ी की याद आ रही थी। इसीलिए ये ब्लॉग लिख दिया है…पढ़ लीजियेगा!!!
धन्यवाद :)

Comments
Post a Comment