महापर्व छठ आ रहा है...



 

“आज छठ का गाना सुने न, तो घर का याद आ गया,

याद आ गया…वो घाट और घाट की सुन्दरता

दउरा और सूप में सजे नारियल और फल 

कोसी, बहंगी आउर अंगना में बईठल हाथी”


आस्था का महापर्व, हम(बिहारियों) लोगों का त्यौहार कम सुकून नजदीक आ रहा है. हमारे लिए दशहरा जो है वो छठ पूजा के आगमन का सन्देश है और जैसा ‘खान सर’ कहते हैं कि दीपावली छठ पूजा का एडमिट कार्ड लेकर आती है. 

वैसे तो सबको छठ के बारे में कुछ न कुछ पता ही होगा. और अगर नहीं पता है तो मेरे अगले आने वाले ब्लोग्स को पढ़ कर उन्हें कई ऐसी जानकारी मिलेगी जो शायद गूगल या कोई अन्य सर्च इंजन न दे पाए. ऐसा इसीलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि मै जो यहाँ लिखूंगी वो आँखों देखा और मन से महसूस किया होगा और इसकी तो बात ही अलग है.

आज यहाँ मैंने अपनी उन भावनाओं को लिखने का प्रयास किया है जो हर वर्ष ‘दुर्गा पूजा’ शुरू होने से पहले ही उमड़ने लगती है. न जाने ऐसा क्यों होता है पर मन जहाँ छठ के आगमन की ख़ुशी में झूमता है वहीं घर न जाने की बात जहन में आते ही व्यथित हो उठता है.

लोगों के लिए छठ बिहार में मनाया जाने वाला एक महापर्व है, घर से दूर रहने वालों के लिए यह घर जाकर परिवार के साथ मानाने वाला त्यौहार है. परन्तु हमारे लिए यह एक ऐसी भावना है जो छठ खत्म होते ही अगले वर्ष उसके आने के इंतज़ार में फिरसे दिन गिनने लगती है.

मैं किसी-किसी वर्ष ही घर जा पति हूँ छठ में, जैसे पिछले वर्ष गयी थी. जाति-पाति के भ्रम से दूर, सुन्दरता एवं मनमोहक छवि की पराकाष्ठा, लोगों के भीतर की आस्था व प्रेम का महापर्व है हमारा “छठ”. यह त्यौहार राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक हर पहलू पर खड़ा उतरता है एवं अपनी महत्ता बनाये रखता है.

मेरे लिए छठ के अलग मायने हैं…  

दिल्ली से चले वाली ट्रेन चाहे अपने तीव्रतम गति से चल रही हो परन्तु जल्दी घर पहुचने की लालसा, घर पहुँचते हीं सबको साथ

देखकर ख़ुश होना, अगले ही पल से छठ की तैयारियों में जुट जाना, हर कार्य को खुद करने की इच्छा प्रकट करना, प्रसाद

बनने के समय ही उसे खाने के बारे में और सभी दोस्तों को बांटने के बारे सोच लेना.


नहाय-खाय से लेकर भोरवा घाटे(सुबह का अर्घ) तक एक अलग ही उर्जा को महसूस करना है, संझिया घाटे(संध्या अर्घ) में

सूरज  डूबने की बड़ी ही  तन्मयता से प्रतीक्षा करना एवं अगली ही सुबह उसी सूर्य के उगने की बाट देखना, अपने घर की पूजा

समाप्त कर घाट घुमने की जिद करना और भैया-दीदी के साथ घाट घुमने निकल जाना. फिर घर पर बिठाये गये हाथियों में

लगे हुए दिए को बुझने से रोकने के लिए बार-बार उसमे तेल डालना व हर पल को अपने कैमरे व मन में कैद करने के लिए

निरंतर जुटे रहना.


मेरे लिए इन सभी भावनाओं का मिश्रण है ‘मेरा छठ’.  मेरी यह भावना निरंतर चलती आ रही है एवं आने वाले सभी वर्षों के

लिए सामान ही रहेगी, पुराणी यादों को संजोते हुए आने वाले त्यौहार में बनाई गयी यादों के साथ फिर अगले वर्ष में छठ के

आगमन की प्रतीक्षा…मेरे लिए यही मेरा महापर्व है.

मेरा छठ महापर्व इसलिए है क्योंकि इसमें जल बीच खड़ी स्त्री ‘छठी मईया’ से केवल सुख-शांति, प्रेम-सौहार्द, अपनापन, ख़ुशी, ममता एवं दुलार की कामना करती है. बड़े ही सुंदर शब्दों में ‘शारदा सिन्हा जी’ ने एक व्रती महिला की कामना को दर्शाते हुए गाया है कि:-

“ गोदी के बलकवा के दी ह, छठी मईया ममता-दुलार,

पिया के सनेहिया बनईह, मईया दी ह सुख सार….सुनिह अरज छठी मईया, बढ़े कुल परिवार”

व्रती महिला केवल अपने संतान के सुख, पति का स्नेह एवं अपने कुल व परिवार की मान-मर्यादा को बढ़ाने की गुहार लगा रही है. ऐसे मनमोहक छवि को सोचकर और छठ के गीतों को सुनकर मन बैठ जाता है.

मैंने जन्म के बाद जबसे होश संभाला है तबसे अपने घर में छठ होते हुए देखा है. दादी करती थी तब, फिर वो चली गयी. उसके बाद मेरी बड़ी माँ कर रहीं हैं और अब पिछले वर्ष से मेरी माँ ने भी छठ उठाया है. 

पहले दादी का छठ करना, मेरा घर का सबसे छोटा बच्चा होते हुए खूब लाड में रहना, भईया का पूरी निष्ठा से घर को जगमग

कर एवं छठ के गीतों को अपने साउंड सिस्टम पर शुरू कर देना, भईया-दीदी लोग के साथ खूब घूमना और एक वर्ष छठ के

समय मुझे टाइफाइड हो गया तब दादी का मेरे लिए ठेकुआ चुरा कर अपने पर्स में रखना. मेरी छठ से जुडी ऐसी अनेक

दिलचस्प कहानियां हैं जिसे लिखते-लिखते यहाँ शब्द कम पड़ जाए. 

खैर, कहने का अर्थ या निष्कर्ष केवल इतना है कि दिल्ली में रहकर १० साल हो गये घर का दशहरा-दिवाली  देखे हुए और शायद इस वर्ष छठ में घर न जा पाएं. घर जाना मुश्किल नहीं है पर जब व्यक्ति घर से निकल कर दूसरी जगह पर अपना जीवकोपार्जन करने लगता है तब कई ऐसी समस्याएँ आती हैं जिसमे जूझ कर वह जहाँ है वही ठहर जाता है. 

इसीलिए मुझे भी अपनी भवनों को यहाँ लिखकर व्यक्त करना पड़ रहा है बाकी तो ख़ुश रहिये सब लोग और खूब मुस्कुराइए

क्योंकि छठ आ रहा है. अपने पंदीदा छठ गीत का लिंक दे दिए हैं, जाईं सुनि आ बताईं कईसन लागल ?


लिंक: छठ गीत



“जय छठी मईया” 

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