उदय से अस्त तक का सफ़र: बनारस
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अस्सी से मणिकर्णिका तक मानो जीवन का सफ़र देखा है
चहल-पहल सी जिन्दगी को श्मशान में ढलते देखा है
बेशक दरभंगा घाट की सुबह सुकून देती हो, पर
सम्पूर्ण बनारस को अपने जीवन में ढलते देखा है !
चहल-पहल सी जिन्दगी को श्मशान में ढलते देखा है
बेशक दरभंगा घाट की सुबह सुकून देती हो, पर
सम्पूर्ण बनारस को अपने जीवन में ढलते देखा है !
“ वाराणसी कहो , बनारस कहो या काशी…यह भूमि लोगों के जीवन में स्थिरता लाती है।”
बनारस वह स्थान है, जहाँ जाकर मनुष्य अपने आत्मा को आध्यात्म से जोड़कर, परमात्मा की प्राप्ति तक का द्वार खोल सकता है । माँ गंगा के उस निश्चल, निरंतर बहते हुए जल को देखकर ऐसी असीम शांति की प्राप्ति होती है जैसी शांति मनुष्य परमात्मा की प्राप्ति पर या मरणोपरांत पाता है । यही असल मायने में ‘आध्यात्म’ है ।
गंगा की बहती कल-कल धारा में जब लहरों द्वारा अपना रौद्र रूप दिखाया जाता है, तब मानो वह जीवन की उन सभी परेशानियों को एक साथ दर्शा रही होती है, जिससे मनुष्य कदम-कदम पर अपने जीवन में जूझता है । इस शहर को किसी भी नाम से जानो या पुकारो, यह स्थान आपके जीवन में एक ऐसी छाप छोड़ता है, जो आपके मन और मस्तिष्क को जीवन के नए आयामों से अवगत करवाती है।
वो दिन मुझे अब भी याद है जब बनारस जाने का निश्चय किया था, और फिर एक दिन वह भी जब काशी विश्वनाथ की नगरी पहुँच गयी । ख़ुश, शांत और थोड़ी हताश भी !
मन में कई सवालों को लिए काशी पहुँच तो गयी थी, पर उन सवालों के जवाब कब , कैसे और कहाँ मिलेंगे इसका कोई अनुमान न था । सवाल कुछ ऐसे कि, तुम क्यों आई हो ? क्या मिलेगा यहाँ आकर ? और सबसे महत्वपूर्ण कि जीवन की जिस शांति को खोजते-खोजते यहाँ तक पहुंची हो, क्या वो मिला ?
और बनारस के हर उस जगह ने जहाँ-जहाँ मैं गयी , मेरे मन असीम को शान्ति और केवल शान्ति ही प्रदान की । जवाब में मानो ईश्वर स्वयं कह रहे हों कि ’तुम्हारा सौभाग्य लेकर आया है यहाँ !’ मै बनारस में थी , वो भी जीवित…क्या ये सौभाग्य की बात नहीं ?
मैंने सांसारिक सुख-दुःख से अपने आप को स्वतंत्र कर मानो उन तीन दिनों में सम्पूर्ण जीवन को देखा और जिया हो।
काशी की भोर से वहां की संध्या तक,सब अपने आप में पूर्ण है । मंदिर जैसे , दुर्गा कुंड, संकटमोचन मंदिर, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का विश्वनाथ मंदिर हो या स्वयं काशी विश्वनाथ का स्थान…भक्तों की कतार और श्रद्धा देखकर मानो मन प्रसन्न हो जाए।
बनारस केवल आध्यात्म का स्थान ही नहीं अपितु शिक्षा प्रदान करने की भी नगरी है। विश्व विख्यात ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ को अपने में समाये वह भोलेनाथ की नगरी जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलुओं (धर्म और शिक्षा ) का बेजोड़ मेल है। काशी के ही ‘अस्सी घाट’ पर रामचरित मानस, कवितावली व विनयपत्रिका जैसे उत्तम कृतियों के रचनाकार ‘संत तुलसीदास’ का बसेरा हुआ करता था। यह स्थान हिन्दू धर्म के सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक है।
काशी विश्वनाथ की यह पवित्र नगरी जिसका अभिषेक स्वयं माँ गंगा करती हैं, वहाँ के ऊँचे-ऊँचे घर , संकरी गलियाँ, अनेकों घाट, मंदिरों की घंटियों की ध्वनि, हज़ारों सीढियां, घाटों पर चमकता सूरज, संध्या में अस्त होता सूर्य व गंगा घाट की मनमोहक आरती एवं मंदिरों में होते मन्त्र उच्चारण, यह सब मनुष्य को भक्ति में डूबने पर बाध्य कर देते हैं। जहाँ एक ओर ‘अस्सी घाट’ से महाकाव्य रचने वाले रचयिता प्रसिद्ध हैं वहीँ दूसरी ओर बनारस की ‘मणिकर्णिका घाट’ मनुष्य को जीवन के असल सत्य ‘मृत्यु’ से भी अवगत करवाती है।
हमारे धर्म में यह मान्यता है कि वाराणसी में मरने वाले मनुष्यों को मोक्ष की प्राप्ति होती है…पर मैंने तो मानो जीवित रहकर उन सभी का अनुभव किया हो। धर्म, शिक्षा, संस्कृति और संगीत के अद्भुत मिश्रण वाले इस ख़ूबसूरत शहर में बिताया हुआ हर लम्हा मेरे लिए अत्यंत सुखदायी था और हमेशा रहेगा।
आखिरकार,
“बनारस एक एसा स्थान है जहाँ मन को शान्ति और परम आनंद की अनुभूति जो होती है।”
- सौम्या

बेहतरीन ❤️🙌
ReplyDeleteशुक्रिया <3
DeleteVery nice
Deleteखूबसूरत
ReplyDelete<3
DeleteAtiuttam👍
ReplyDeleteThank You
Deleteबहुत खूब 👏👏
ReplyDeleteधन्यवाद !
DeleteBeautiful ❤️
ReplyDeleteKeep it up👍🧿
ReplyDeleteBhut khoob soumyaa
ReplyDeleteThanks Yaar
DeleteBahut hi badhiya ❣️
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