फिल्म समीक्षा: स्त्री २ (सरकटे का आतंक)

फिल्म: स्त्री २(सरकटे का आतंक) २०२४ 

डायरेक्टर: अमर कौशिक 

कलाकार: राजकुमार राव, श्रद्धा कपूर, पंकज त्रिपाठी, अभिषेक बनर्जी, तमन्ना भाटिया, अपारशक्ति खुराना 

केमिओ: अक्षय कुमार और वरुण धवन 

IMDb रेटिंग: 7.8/10

बॉक्स ऑफिस: 632.74 करोड़ 

Photo: Google

“मनोरंजन के बिना सिनेमा को पूर्ण नहीं माना जाना चाहिए।” आज से लगभग २ सप्ताह पहले (१५ अगस्त २०२४) फिल्म रिलीज़ हुई और उसी दिन देखने का प्लान बन गया था। सुबह ९ बजे का स्लॉट बुक करके हम पहुँच चुके थे यह फिल्म देखने। इस फिल्म का पार्ट एक कई बार देखा हुआ था इसीलिए पार्ट २ में नया क्या होगा, इसे जानने की उत्सुकता हमसे रोकी नहीं गयी। 

फिल्म को देखने का एक दूसरा व महत्वपूर्ण कारण: बिहारी हूँ न इसीलिए ‘पवन सिंह’ का गाना थिएटर में सुनने चली गयी थी।;)

फिल्म की शुरुआत एक मुश्किल दृश्य से होती है, एक युवा महत्वाकांक्षी आधुनिक लड़की को एक प्राचीन पितृसत्तात्मक भयावह आत्मा द्वारा हिंसक तरीके से अगवा कर लिया जाता है। मुझे लगा कि इस विषय पर हंसना निश्चित रूप से इस समय राष्ट्र के मूड में नहीं है। हालांकि फिल्म आगे बढ़ी, और पॉप संस्कृति पर मूर्खतापूर्ण और हल्के-फुल्के व्यंगातमक प्रहारों के साथ अपना रास्ता बनाया और वास्तव में एक भरे हुए हॉल को जोर से हंसाने में कामयाब रही।

सभी ने इस फिल्म को एक हॉरर कॉमेडी के रूप में देखा होगा और शायद कई लोगो ने उससे ज्यादा भी! और मैं उन कई लोगो में से हूँ जिसे केवल मनोरंजन के आलावा भी बहुत कुछ दिखा…

साहित्य जब सांस्कृतिक संदर्भ लेकर मानसिक पीड़ा को हास्य के माध्यम से व्यक्त करता है, तब ऐसी फिल्में जन्म लेती हैं। इस फिल्म में पौराणिक कथाओं का रक्तबीज, महाभारत का दुशासन, और आधुनिक स्त्री विमर्श का समावेश है। 

महादेव के आदिम अर्धनारीश्वर संदर्भ के साथ ही आज के समाज में पितृसत्ता से निपटने का बड़ा प्रश्न उठाया गया है। पितृसत्ता से विरोध करना पितृ से विरोध करने से भिन्न है। जब तक स्त्री और पुरुष एक-दूसरे का सहयोग नहीं करेंगे, यह समस्या नहीं सुलझेगी। 

इस समस्या का समाधान केवल वही व्यक्ति कर सकता है जो प्रेम में डूबा हुआ हो। इसके लिए किसी ताकतवर या कड़े इंसान की जरूरत नहीं, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति चाहिए जो मनुष्य हो—जिसमें क्रोध, ईर्ष्या और रूढ़िवाद से मुक्ति हो, और जिसमें सबको एकजुट करने की इच्छा हो।

नायक की असली शक्ति उसकी सहचर्यता में है, न कि किसी रक्षा मुद्रा में। कुल मिलाकर, स्त्री और भेड़िये का यह मिश्रण मनोरंजक होने के साथ-साथ प्रतीकात्मक भी है। हिंदी सिनेमा में ऐसी फिल्में कम ही बनती हैं जो कहे से अधिक अनकहे को गूंजा सकें, और आज के समय की समझ को प्रस्तुत कर सकें। 

फिल्म की कहानी, पात्र, मंचन का रूप, पंकज त्रिपाठी द्वारा उपयोग की गई हिंदी भाषा, और फिल्म के सभी गाने अद्वितीय हैं।

"सरकटा होना भी सरफिरा होने के बराबर है। जिसकी नजरें पिछली सदी पर टिकी हों, उसके विचार अगली सदी के नहीं हो सकते।"

Fact: आधुनिक महिलाओं को एक वैकल्पिक क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया था, जहाँ वे फंस गईं। उस क्षेत्र में उन्हें सफ़ेद साड़ी पहनाई जाती थी और सिर मुंडाए जाते थे। स्पष्ट पुरातन विधवा परंपराएँ सूक्ष्म थीं, जो पितृसत्ता के प्रतीकवाद के उदाहरण के रूप में अच्छी तरह से तैयार की गई थीं।


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