अपनी ही भाषा 'हिंदी' को एक दिवस के रूप में क्यों मना रहे हैं?
Picture Credit: Amar Ujala
भारत की संविधान सभा ने 14 सितम्बर 1949 में हिंदी को राजभाषा का दर्ज़ा दिया. लेकिन यह हिंदी के सम्मान से ज्यादा उस पर कुठाराघात अधिक प्रतीत होता है क्योंकि जिस हिंदी को पूरा भारत राष्ट्रभाषा का सम्मान देता रहा, उसे 1949 में उसेक पद से गिराकर एक गौण राजभाषा का दर्ज़ा प्रदान कर दिया गया.
राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(5) में यह सर्वसम्मति से प्रावधान किया गया कि जब तक एक भी राज्य एसा रहता है जो अंग्रेजी को हटाकर हिंदी को नहीं अपनाता, तब तक अंग्रेजी सह-राजभाषा के रूप में भारतवर्ष में प्रयोग में लायी जाती रहेगी. इसके बाद भी हिंदी भाषा को ऐसे कई आघात पहुंचाए गये जिससे उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा न मिला.
स्पष्ट है कि सम्मानित राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रतिष्ठित होने के सभी रास्ते अवरुद्ध हो गये और शायद इसी अवरुद्धता को सभी के आँखों से ओझल करने के लिए बीते दो दशकों से ‘हिंदी सप्ताह’, ‘हिंदी पखवाडा, और ‘हिंदी दिवस’ जैसे दिन मनाये जाने का प्रावधान किया गया.
आज ही YouTube पर ‘अनुराज हिंदी अकादमी’ नाम से एक चैनल अर्थात अनुराज सर का कम्युनिटी पोस्ट पढ़ा, जिससे ये अनुभूति हुई कि केवल सरकार और उसके नियम ही इस अवरुद्धता का कारण नहीं हैं हमारी अपनी भाषा को उसका निश्चित आयाम न दे पाने में…बल्कि पूरा समाज इसका जिम्मेदार है.
यह कहाँ लिखा है कि अच्छी हिंदी बोलने वाला व्यक्ति अंग्रेजी नहीं बोल सकता? या कोई हिंदी विषय का शिक्षक/शिक्षिका अन्य विषयों में परांगत नहीं हो सकते!
भारत में दो हिंदी जानने, बोलने और समझने वालो व्यक्ति भी आपस में मिलकर केवल अंग्रेजी में बात करते हैं - कोई हिंदी में बात नहीं करना चाहता है क्योंकि हमारे देश में अंग्रेजी सामाजिक श्रेष्ठता का भी आधार बन गयी है. और मैं दावे के साथ कह सकती हूँ की अधिकतर युवा पीढ़ी को हिंदी के सामान्य वर्णमालाओं का ज्ञान भी नहीं है.
संसार जब एकजुट होने की कगार पर है तब अन्य सभी देशों (जैसे- ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, चीन, जापान और रूस) में हिंदी एक पाठ्यक्रम के रूप में पढाई जाने लगी है. परन्तु भारत और यहाँ के लोगों की विवेकशून्यता अब भी कायम है. इसीलिए 1949 के बाद से आजतक भी हिंदी को सह-राजभाषा के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. इसका एक महत्वपूर्ण कारण है कि कोई भी सार्वजानिक तौर पर हिंदी बोलना ही नहीं चाहता है. इसीलिए आज हमे अपनी ही भाषा का प्रयोग करने के लिए या कहें कि अपनी भाषा को सम्मान देने के लिए एक दिवस की आवश्यकता पड़ चुकी है!!!
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि भाषा केवल बातचीत का माध्यम न होकर हमारे लिए भाव, संस्कृति व विचारों का आदान-प्रदान भी है. हमें अन्य भाषाएँ सीखने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए तभी हम दूसरी संस्कृति व साहित्य को अच्छे से समझ पाएँगे. दूसरों की भाषा सीखें परन्तु अपनी भाषा को छोड़कर नहीं!! अपने जड़ों से जुड़े रहें क्योंकि ये हमारी धरोहर है. इसीलिए अपनी भाषा का प्रयोग करते समय हीनता नहीं अपितु गौरव का अनुभव करना चाहिए.
बाकि, हिंदी पढ़ने-पढ़ाने वालों की एक दिन की शुभकामना उनके बाकी दिनों पर कैसे भारी पड़ती है यह ‘अनुराज सर’ द्वारा लिखे पोस्ट से उसे महसूस ही किया जा सकता है.
खैर, HINDI DIWAS KI SABHI KO BADHAI! ;)

सारगर्भित! तथ्यात्मक 🙂
ReplyDeleteआभार
Delete