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The Detachment Theory (Part 2)

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हम सब अपने जीवन में रिश्तों से घिरे होते हैं—परिवार, दोस्त, रिश्तेदार—जो हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। लेकिन, कभी-कभी इन्हीं रिश्तों में उलझकर हम अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। यहां हमें ‘अलगाव का सिद्धांत’ समझने की आवश्यकता होती है। अलगाव का मतलब रिश्तों को छोड़ना नहीं, बल्कि उनके प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण रखना है, ताकि हम सुखी और शांतिपूर्ण जीवन जी सकें। अलगाव का सिद्धांत क्या है? अलगाव का सिद्धांत बताता है कि हमें हर परिस्थिति और हर व्यक्ति से एक हद तक जुड़ाव रखना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि हम रिश्तों को तोड़ दें, बल्कि यह समझें कि कोई भी व्यक्ति या परिस्थिति हमारे आंतरिक शांति और खुशी के लिए जिम्मेदार नहीं है। यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि बिना अपेक्षाओं के अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए। जीवन में अलगाव क्यों जरूरी है? अपरिपक्व अपेक्षाओं से बचाव: रिश्तों में अक्सर हम दूसरों से अपेक्षाएं रखते हैं। अगर हमें दूसरों से अपेक्षित व्यवहार नहीं मिलता तो हम दुखी और निराश हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि आप सोचते हैं कि आपका दोस्त हर परिस्थिति में आपके साथ रहेगा और एक दिन व...

अलगाव का सिद्धांत (The Detachment Theory) Part 1

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यह सीखना कि किस तरह से खुद को उन चीजों से अलग किया जाए जो अब मेरे काम की नहीं हैं, या सिर्फ एक अलगाव की मानसिकता अपनाना, मेरे लिए बहुत सी भावनात्मक पीड़ाओं से बचने का साधन बन सकता था। इससे मुझे बेहतर समझ में आता कि इस दुनिया में मेरे लिए क्या सही है और कैसे ब्रह्मांड पर विश्वास किया जाए कि वह मुझे सही रास्ते पर ले जाएगा। खैर, मुझे और ज्यादा इस बारे में बात करने की जरूरत नहीं है कि मुझे यह क्यों सीखना था! यहाँ वह बातें हैं जो अनासक्ति का सिद्धांत (Law of Detachment) में जाननी जरूरी हैं। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में समस्याएं, तनाव, और उम्मीदें अक्सर हमें मानसिक और भावनात्मक रूप से थका देती हैं। हम अपनी इच्छाओं, रिश्तों, और परिणामों से इस कदर जुड़ जाते हैं कि जब चीजें हमारे हिसाब से नहीं होतीं, तो निराशा और दुख का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अलगाव का सिद्धांत (Law of Detachment) हमारे जीवन में शांति और खुशहाली का मार्ग दिखाता है। यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि किस तरह हमें चीजों से जुड़ाव तो रखना है, लेकिन उनका भावनात्मक भार नहीं उठाना। अलगाव का अर्थ क्या है? अलगाव का मतलब यह नहीं है कि...

अपनी ही भाषा 'हिंदी' को एक दिवस के रूप में क्यों मना रहे हैं?

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                                                                                  Picture Credit: Amar Ujala भारत की संविधान सभा ने 14 सितम्बर 1949 में हिंदी को राजभाषा का दर्ज़ा दिया. लेकिन यह हिंदी के सम्मान से ज्यादा उस पर कुठाराघात अधिक प्रतीत होता है क्योंकि जिस हिंदी को पूरा भारत राष्ट्रभाषा का सम्मान देता रहा, उसे 1949 में उसेक पद से गिराकर एक गौण राजभाषा का दर्ज़ा प्रदान कर दिया गया. राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(5) में यह सर्वसम्मति से प्रावधान किया गया कि जब तक एक भी राज्य एसा रहता है जो अंग्रेजी को हटाकर हिंदी को नहीं अपनाता, तब तक अंग्रेजी सह-राजभाषा के रूप में भारतवर्ष में प्रयोग में लायी जाती रहेगी. इसके बाद भी हिंदी भाषा को ऐसे कई आघात पहुंचाए गये जिससे उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा न मिला. स्पष्ट है कि सम्मानित राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रतिष्ठित होने के सभी रास्ते अवरुद...

फिल्म समीक्षा: स्त्री २ (सरकटे का आतंक)

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फिल्म: स्त्री २(सरकटे का आतंक) २०२४  डायरेक्टर: अमर कौशिक  कलाकार: राजकुमार राव, श्रद्धा कपूर, पंकज त्रिपाठी, अभिषेक बनर्जी, तमन्ना भाटिया, अपारशक्ति खुराना  केमिओ: अक्षय कुमार और वरुण धवन  IMDb रेटिंग: 7.8/10 बॉक्स ऑफिस: 632.74 करोड़  Photo: Google “मनोरंजन के बिना सिनेमा को पूर्ण नहीं माना जाना चाहिए।” आज से लगभग २ सप्ताह पहले (१५ अगस्त २०२४) फिल्म रिलीज़ हुई और उसी दिन देखने का प्लान बन गया था। सुबह ९ बजे का स्लॉट बुक करके हम पहुँच चुके थे यह फिल्म देखने। इस फिल्म का पार्ट एक कई बार देखा हुआ था इसीलिए पार्ट २ में नया क्या होगा, इसे जानने की उत्सुकता हमसे रोकी नहीं गयी।  फिल्म को देखने का एक दूसरा व महत्वपूर्ण कारण: बिहारी हूँ न इसीलिए ‘पवन सिंह’ का गाना थिएटर में सुनने चली गयी थी।;) फिल्म की शुरुआत एक मुश्किल दृश्य से होती है, एक युवा महत्वाकांक्षी आधुनिक लड़की को एक प्राचीन पितृसत्तात्मक भयावह आत्मा द्वारा हिंसक तरीके से अगवा कर लिया जाता है। मुझे लगा कि इस विषय पर हंसना निश्चित रूप से इस समय राष्ट्र के मूड में नहीं है। हालांकि फिल्म आगे बढ़ी, और पॉप संस्क...

दोस्त की शादी और बैजरो

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उत्तराखंड भारत के उत्तर में स्थित एक अद्भुत राज्य है, जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। यह राज्य प्रकृति की अनमोल संपदा और पवित्र नदियों के लिए प्रसिद्ध है। इस राज्य में घने जंगल, राजसी पहाड़ और शांत सुंदरता आपको खुद में खोने के लिए मजबूर कर देती है। ऐसे ही एक छोटे से गाँव का चित्रण है, जो  "बैजरो" के नाम से प्रसिद्द है। बैजरो उत्तराखंड के एक खूबसूरत गांव का नाम है, जहाँ  के लोग एक सांझ के ढलक में खो जाते हैं। मैंने और मेरे दोस्तों ने अपने खास दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए एक अनोखी यात्रा की योजना बनाने का फैसला किया और पहुँच गये आनंद विहार बस अड्डे अपना सामन बाँध कर। यात्रा की शुरुआत: हमारी यात्रा प्रकृति और सौंदर्य से भरपूर आनंद विहार बस अड्डे से शुरू हुई। ISBT से बैजरो तक का सफर लगभग 380 किलोमीटर का था और हमने अपने दोस्त के साथ बस  में सफर किया। रास्ते में हमें कुछ दिलचस्प गांव भी दिखे, जिनका इतिहास हमें अपनी कहानी बताने पर मजबूर कर गया। विकास से दूर, इन गावों की सांझें अपने एक अलग दुनिया में बसी हुई थी।   और इस सफ़र में अगर मैं हमारे बस ड्राईवर भई...

मेरा आगार : सीतामढ़ी

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"मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव । जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥" अनुवाद : "मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।" दुनिया में सबके पास एक ऐसी जगह होती है जिसे वे अपना घर कहना पसंद करते हैं। एक ऐसी जगह जो परिपूर्ण तो नहीं है लेकिन यादों का एक अम्बार लेकर आती है। वह जगह जहाँ सभी आपके परिचित होते हैं, वही पुरानी इमारतें, वही सार्वजनिक समस्याएं और स्थानीय लोगों से निपटने का एक परिचित तरीका होता है। ये सभी चीज़ें हमे अपने घर को अन्य स्थानों से अधिक महत्व देने पर मजबूर करते हैं। तो आज मैं यहां, अपने ‘घररररर’ का वर्णन करूंगी। घर शब्द पर अधिक ज़ोर इसीलिए दिया है क्योंकि मुझे अपने घर से बहुत प्यार व लगाव है। मेरे आस-पास के लोग यानि मेरा परिवार, मेरे मित्र व मेरे सभी करीबी लोगों को ये मालूम है कि मुझे अपने घर, उस स्थान से कितना लगाव है। मेरा जन्म ‘सीतामढ़ी’ नामक एक छोटे से शहर में हुआ है।  सीतामढी एक भारतीय शहर है और बिहार के मिथिला क्षेत्र में सीतामढी जिले का जिला मुख्यालय है और तिरहुत ...

महापर्व छठ आ रहा है...

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  “आज छठ का गाना सुने न, तो घर का याद आ गया, याद आ गया…वो घाट और घाट की सुन्दरता दउरा और सूप में सजे नारियल और फल  कोसी, बहंगी आउर अंगना में बईठल हाथी” आस्था का महापर्व, हम(बिहारियों) लोगों का त्यौहार कम सुकून नजदीक आ रहा है. हमारे लिए दशहरा जो है वो छठ पूजा के आगमन का सन्देश है और जैसा ‘खान सर’ कहते हैं कि दीपावली छठ पूजा का एडमिट कार्ड लेकर आती है.  वैसे तो सबको छठ के बारे में कुछ न कुछ पता ही होगा. और अगर नहीं पता है तो मेरे अगले आने वाले ब्लोग्स को पढ़ कर उन्हें कई ऐसी जानकारी मिलेगी जो शायद गूगल या कोई अन्य सर्च इंजन न दे पाए. ऐसा इसीलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि मै जो यहाँ लिखूंगी वो आँखों देखा और मन से महसूस किया होगा और इसकी तो बात ही अलग है. आज यहाँ मैंने अपनी उन भावनाओं को लिखने का प्रयास किया है जो हर वर्ष ‘दुर्गा पूजा’ शुरू होने से पहले ही उमड़ने लगती है. न जाने ऐसा क्यों होता है पर मन जहाँ छठ के आगमन की ख़ुशी में झूमता है वहीं घर न जाने की बात जहन में आते ही व्यथित हो उठता है. लोगों के लिए छठ बिहार में मनाया जाने वाला एक महापर्व है, घर से दूर रहने वालों के लिए यह घ...