कविता : इश्क़ है!

 फोटो : मेरे द्वारा बनाई गयी है 

भरी महफ़िल में एकाएक

यह सवाल उठा 

कि ज़रा कोई बताएगा, इश्क़ क्या है ? 

मैंने भी हामी भरी

और शुरू किया कि जनाब

ज़रा गौर से सुनियेगा 


जब आपकी झुकी नज़रें

लाज़ से उठी ना हो

और मेरी पूरी उमर

थम सी गई हो,

हाँ, मेरी पूरी उम्र थम सी गई हो।

ये इश्क़ है।


वो कहना भी ना चाहे 

और मेरा दिल समझ जाए 

दूरियाँ जब तरपायें 

और मिलने की तारीख नज़र ना आए 

हां, ये भी एक इश्क़ है।


बातें ना हो पर

आंखे सारा हाल बताएं 

जिसका अंजाम न मैं जानूं 

न वो वाकिफ़ हो 

और जताने का हक सिर्फ मुझे हो 

जी हां...यही इश्क़ है ।


जब घंटों की मुलाक़ात

पल भर की लगे

और पल भर में मानो

पूरी उम्र निकल जाए,

यही इश्क़ है।


उसके जाने बिना उसे चाहना , इश्क़ है 

उसकी बातों में 

अपना ज़िक्र ढूंढना , इश्क़ है 

उसकी उलझनों को
 
खुद से सुलझाना , इश्क़ है।


जब बिन मांगे हमें खुदाई मिल जाए

ऐसा हमारा इश्क़ है।


तुम्हारी एक झलक से हम

अपने आप में पूर्ण हो जाएँ,

पास ना हो तुम फिर भी

हम इतरायें,

ये भी एक इश्क़ है।


गगन के आज़ाद पंछी को

सागर की गहराई बता दे जो,

थके पथिक को

छाँव दे जो,

अनभिज्ञ चित को

समर्पण का पान कराये जो,

ऐसा ये इश्क़ है।


खुद को खुद से मिला दे जो 

पल भर में मुझको खुदा बना दे जो,

ऐसा एक नूर...इश्क़ है।।


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